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अयोध्या में राम मंदिर तैयार, मस्जिद की नींव तक नहीं:फंड की कमी, नक्शा पास नहीं; लोग बोले- सिर्फ बातें हो रहीं

 

ग्राउंड रिपोर्ट

अयोध्या में राम मंदिर तैयार, मस्जिद की नींव तक नहीं:फंड की कमी, नक्शा पास नहीं; लोग बोले- सिर्फ बातें हो रहीं

अयोध्या13 घंटे पहलेलेखक: देवांशु तिवारी

 

‘5 साल बीत गए। मस्जिद की जमीन पर एक गड्ढा नहीं खुदा है। सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं। कभी बोले, यहां अस्पताल बनेगा, कभी कहा स्कूल-कॉलेज खोलेंगे। असलियत में एक पत्ता तक नहीं हिला है। अब लगता है कि मस्जिद का इंतजार करते-करते उम्र खत्म हो जाएगी, लेकिन इंतजार खत्म नहीं होगा।’

ये अरमान अहमद हैं। अयोध्या के धन्नीपुर गांव में रहते हैं। अयोध्या से 28 किमी दूर इसी गांव में बाबरी मस्जिद की जगह दूसरी इबादतगाह बननी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इसके लिए 5 एकड़ जमीन मिली है। अरमान का घर मस्जिद की जमीन के बिल्कुल सामने है।

 

9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाया था। राम मंदिर और मस्जिद बनाने के लिए ट्रस्ट बनाने की बात भी कही। मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को जमीन दी गई।

मस्जिद कमेटी बनी, नक्शा बना, नई मस्जिद की फोटो जारी होती रहीं, लेकिन 5 साल बाद भी यहां एक ईंट नहीं रखी गई। ट्रस्ट के पास फंड नहीं है, मस्जिद का नक्शा भी अब तक पास नहीं हुआ है।

राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है। उधर, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद मस्जिद का काम कहां रुका है, इसका जवाब जानने दैनिक भास्कर धन्नीपुर गांव पहुंचा।

 

गांव में मस्जिद बना रहे ट्रस्ट का बोर्ड लगा है। इस पर मस्जिद की फोटो बनी है, हालांकि ये डिजाइन पुराना है। अब नए डिजाइन के हिसाब से मस्जिद बनेगी।

गांव की आबादी 2000, इनमें 1200 मुस्लिम
फैजाबाद-लखनऊ नेशनल हाईवे पर बसे धन्नीपुर गांव की आबादी लगभग दो हजार है। इनमें 60%, यानी करीब 1200 मुस्लिम हैं। गांव के बीच में बनी शाहगदा शाह मजार के चारों तरफ 5 एकड़ जमीन कई साल से खाली पड़ी है।

 

धन्नीपुर की इसी जमीन पर नई इबादतगाह बननी है। इस जगह एक दरगाह और खाली मैदान है। फिलहाल यहां बच्चे क्रिकेट खेलते हैं।

दरगाह की दीवार पर एक पोस्टर चिपका है, जिस पर अंग्रेजी में लिखा है- A MASTERPIECE IN MAKING.

इसके ठीक बगल में सफेद संगमरमर से बनी 5 मीनारों वाली 'मोहम्मद-बिन-अब्दुल्लाह' मस्जिद की फोटो दिखाई दे रही है। इसी मस्जिद के बनने की उम्मीद धन्नीपुर के लोग 2019 से पाले हुए हैं। मोहम्मद अरमान भी उनमें से एक हैं।

 

दरगाह की दीवार पर लगा पोस्टर। इसमें दिख रही फोटो का नक्शा ही अब पास होने के लिए लगाया जाना है।

परचून की दुकान चलाने वाले अरमान कहते हैं, ‘आप खुद ही देख रहे हैं। 1% भी काम हुआ हो तो बताइए। हर साल जमीन की नपाई होती है, अधिकारी सर्वे करके चले जाते हैं। कुछ होता नहीं है। कोर्ट चाह ले तो 6 महीने में ये काम हो सकता है, लेकिन इस पर सब चुप हैं, कोई बोलना नहीं चाहता।’

 

गांव के ज्यादातर लोग अब मस्जिद की बात भी नहीं करते
सेंसिटिव मुद्दा होने की वजह से धन्नीपुर के ज्यादातर लोग मस्जिद पर बात करने से बचते हैं। महिलाएं तो बिल्कुल नहीं बोलतीं। कुछ बुजुर्ग और नौजवान ही खुलकर बात करते हैं। गांव में मस्जिद बनने का ऐलान हुआ, तो ये भी कहा गया कि यहां हॉस्पिटल और कॉलेज बनेंगे।

24 साल के रेहान धन्नीपुर से 28 किलोमीटर दूर फैजाबाद पढ़ने जाते हैं। वे कहते हैं, ‘मस्जिद बनती तो गांव में ही कॉलेज होता। मैं यहीं पढ़ता, घरवालों का पैसा बचता, लेकिन यहां तो अभी बस नक्शा पास हो रहा है।’

 

ट्रस्ट के पास मस्जिद बनाने के लिए फंड नहीं
इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट, यानी IICF को धन्नीपुर में मस्जिद बनाने की जिम्मेदारी मिली है। ट्रस्ट के सेक्रेटरी अतहर हुसैन इसमें हो रही देरी के पीछे 2 वजह बताते हैं।

पहली: ट्रस्ट के पास फंड की कमी।
दूसरी: नक्शा पास न होने से काम पिछड़ गया है।

अतहर हुसैन कहते हैं, ‘मस्जिद के नए डिजाइन के हिसाब से हमें ज्यादा फंड की जरूरत है। नए रोडमैप के मुताबिक, मस्जिद परिसर में कैंसर हॉस्पिटल से लेकर बड़ी किचन बनाई जाएगी। इसमें हर धर्म के लोग खाना खा सकेंगे। हमारी कोशिश है कि हम मस्जिद को हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के प्रतीक के तौर पर डेवलप करें। इसके लिए 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की याद में म्यूजियम बनाया जाएगा।’

‘प्रोजेक्ट का नया डिजाइन भी अब फाइनल है। इसे पुणे के आर्किटेक्ट इमरान शेख ने बनाया है। मस्जिद ट्रस्ट फरवरी में यूपी सरकार को इसका प्रपोजल भेजेगा।’

 

मस्जिद बनने से पहले इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ने धन्नीपुर और आसपास के गांवों में फ्री एंबुलेंस सर्विस शुरू की है। ट्रस्ट का कहना है कि भले मस्जिद बनने में देर हो रही है, लेकिन कोशिश है कि हमारी हेल्थ सर्विस का फायदा अभी से लोगों को मिले।

 

इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन की ओर से चलाई जा रही एंबुलेंस आसपास के गांवों के मरीजों को फैजाबाद जिला अस्पताल तक पहुंचाती है।

नवंबर, 2022 में डोनेशन की लिस्ट जारी की थी, दान देने वालों में 40% हिंदू
2019 में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस पर फैसला आने के 9 महीने बाद ट्रस्ट ने मस्जिद बनाने के लिए लोगों से मदद मांगी थी। इसके लिए बैंक अकाउंट की डिटेल पब्लिक की थी। नवंबर, 2022 तक ट्रस्ट को देशभर से करीब 40 लाख रुपए डोनेशन मिला। करीब 30% डोनेशन कॉर्पोरेट सेक्टर से आया। 30% हिस्सा मुस्लिम समुदाय और बाकी 40% हिस्सा हिंदू समुदाय की तरफ से मिला था।

मस्जिद ट्रस्ट के मेंबर अरशद खान बताते हैं, ‘मस्जिद के लिए सबसे पहला डोनेशन लखनऊ यूनिवर्सिटी में फैकल्टी रोहित श्रीवास्तव ने दिया था। उन्होंने 21 हजार रुपए की मदद की थी।’

मस्जिद ट्रस्ट का कहना है कि हम डोनेशन के लिए जल्द QR कोड जारी करेंगे, ताकि दुनिया भर से लोग मदद कर सकें।

मस्जिद में बनने वाले कैंटीन में वेजीटेरियन खाना मिलेगा
धन्नीपुर में रहने वाले मोहम्मद सोहराब मस्जिद की जमीन की देखरेख करते हैं। वे कहते हैं, ‘दिसंबर में मस्जिद ट्रस्ट की मीटिंग हुई थी। इसमें तय हुआ कि इस मस्जिद को ऐसी जगह बनाएंगे, जहां हर धर्म के लोग आएं। इसमें मेडिकल कॉलेज और लॉ कॉलेज भी बनवाया जाएगा। यहां कैंटीन भी बनेगा, जिसमें वेजीटेरियन खाना मिलेगा। इसका मकसद है कि यहां किसी भी धर्म के लोग आएं, वे खाली पेट न रहें।’

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